
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़नः रोकथाम और निपटारा
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम 2013, भारत
भूमिका
'यौन उत्पीड़न' शब्द भारत में कई लोगों के लिए नया होगा, पर यौन प्रकृति वाला अनचाहा, अनुचित व्यवहार, जिसे, 'ईव-टीजिंग' (लड़की को छेड़ना) भी कहा जाता है, भारत अथवा दुनिया के कई अन्य हिस्सों के लिए नया नहीं है। भारत की महिलाओं के लिए यह एक हकीकत है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, अधिकांश मामलों में पुरूषों द्वारा महिलाओं को लक्ष्य कर किया जाता है, लेकिन किसी भी महिला या पुरूष को ऐसा व्यवहार सहन नहीं करना चाहिए, जो उनकी इज्ज़त और मर्यादा का उल्लंघन करे, और जिससे उस व्यक्ति, संस्थान या समाज पर नकारात्मक असर पड़े। ऐसे व्यवहार पर रोक लगाने के लिए कई एशियाई देशों ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने हेतु वैधानिक कदम उठाए हैं। इसी साल भारत ने इस दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए 'कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण)' अधिनियम 2013 पारित किया है।
यह अधिनियम लोक सभा में 3 सितम्बर 2012 को तथा राज्य सभा में 26 फरवरी 2013 को पारित हुआ, और 23 अप्रेल 2013 को इसे अधिसूचित किया गया। यह अधिनियम इस बात को वैधता प्रदान करता है कि यौन उत्पीड़न के चलते संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 के तहत महिलाओं को हासिल समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। इन अनुच्छेदों के अंर्तगत न्याय के समक्ष समानता का प्रावधान किया गया है तथा 'धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है और इसकी रोकथाम और निवारण का प्रावधान करता है। यह कानून यौन उत्पीड़न की उसी परिभाषा को प्रयोग में लाता है, जो उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने 'विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, 1997' मामले में दी थी जो की लैंगिक भेदभाव और हिंसा के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसमें अभी भी कुछ वैधानिक कमियां हैं, क्योंकि इसमें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सिर्फ महिलाओं के लिए सुरक्षा की बात की गई है, पुरूषों के लिए नहीं।
भारत सरकार, खास तौर पर श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने, यौन उत्पीड़न पर काबू पाने को ले कर प्रतिबद्धता दिखाई है; क्योंकि यह रोजगार और बरताव के समान अवसर के महिलाओं के अधिकार में बाधक बनता है। 15 मार्च 2013 को कार्यस्थल पर लैंगिक समानता के सवाल पर हुई 'त्रिकोणीय अंतर-मंत्रालय टास्क फोर्स' की बैठक में इसको लेकर प्रतिबद्धता जतायी गयी। जवाब में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम और निवारण के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की मदद से विशाखा दिशानिर्देशों के अनुरूप श्रम आयुक्त और आंतरिक शिकायत समिति के लिए एक मार्गदर्शिका का प्रारूप तैयार किया गया। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम, 2013, पारित होने के बाद हालांकि इस मार्गदर्शिका-प्रारूप का नवीनीकरण करने तथा अधिनियम के अनुरूप इस दस्तावेज को तैयार करने का निर्णय लिया गया ताकि, केंद्र, राज्य एवं जिला स्तर पर तथा नियोजकों, कर्मचारियों एवं महिला संगठनों के बीच इस अधिनियम को सुगमता पूर्वक लागू किया जा सके।
इस दस्तावेज को कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम एवं इसके खिलाफ समुचित कदम उठाने के एक व्यापक साधन के रूप में तैयार किया गया है।
अध्याय-1: परिचय
1.1 वैश्विक अवलोकन
यह सुनिश्चित करना कि काम-काज की दुनिया भेदभाव और हिंसा से मुक्त होगी, सम्मानजनक काम की प्राप्ति की सबसे अहम जरूरत है। भेदभाव से मुक्ति और समानता के अधिकार को मानवाधिकार सुरक्षा के केन्द्र में रखने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है, तथा अधिकतर देशों के संविधान और मानवाधिकार अनुबंधों में इसको केंद्र में रखा गया है। कामकाज के क्षेत्र में भेदभाव से मुक्ति और समान अवसर व बरताव को मूल मानवाधिकार और श्रम अधिकार माना जाता है जो कि सामाजिक न्याय और विकास की बुनियादी शर्त है।
ILO की 1944 की फिलाडेल्फिया घोषणा में कहा गया था कि सभी इंसान, चाहे वो किसी भी नस्ल, जाति, समुदाय अथवा लिंग के हो, उन्हें आजादी, सम्मान, आर्थिक सुरक्षा एवं अवसरों की समान उपलब्धता वाले माहौल में अपने भौतिक एवं मानसिक विकास के लिए प्रयास करने का अधिकार है तथा भेदभाव से उन अधिकारों का उल्लंघन करता है जिनका जिक्र 'मानवाधिकारों के सर्वभौमिक घोषणा पत्र' में किया गया है।
1.2 कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के निवारण का महत्व
यौन उत्पीड़न भेदभाव का एक गंभीर रूप है, और इसे बरदाश्त नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह काम में समानता का अवमूल्यन है, और काम करने वालों की इज्ज़त, गरिमा और सलामती के खिलाफ है। सभी मजदूरों को, चाहे महिला हों या पुरूष, ऐसे कार्यस्थल पर काम करने का अधिकार है, जो सुरक्षित, आजाद, भेदभाव व हिंसा से मुक्त हो, और महिलाओं के लिए अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने में सहायक हो, क्योंकि कार्य स्थल ऐसा स्थान है जहां वे अपने दिन का ज्यादातर समय बिताते हैं।
यौन उत्पीड़न के बाद उसके शिकार व्यक्ति पर बहुत गहरा नकारात्मक असर पड़ता है। उसे मानसिक पीड़ा, शारीरिक पीड़ा और व्यवसायिक घाटे झेलने पड़ते हैं। जो कर्मचारी यौन उत्पीड़न का शिकार होता है, उसकी क्षमता के विकास की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसका नकारात्मक असर सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता बल्कि पूरे संस्थान मे काम कर रहे बाकी कर्मचारी और समूचा कार्यस्थल इससे प्रभावित होते हैं। इसके कई नकारात्मक परिणाम होते हैं जैसे सामूहिक कार्य में बाधा, आर्थिक नुकसान, उत्पादन मे क्षति और विकास की गति धीमी पड़ना। यह समाज में महिलाओं और पुरूषों के बीच समानता और बराबरी कायम करने के रास्ते में बाधा पहुंचाता है। चूंकि यह लैंगिक हिंसा और भेदभाव को सही ठहराता है, इसलिए इससे पूरे देश के विकास और लोगों की खुशहाली को हानी होती है। इसलिए, यौन उत्पीड़न को रोकना और इसका निवारण करना समाज के हित में है।
अध्याय-2: यौन उत्पीड़न से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय वैधानिक रूपरेखा
2.1 अंतर्राष्ट्रीय वैधानिक रूपरेखा
कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की भागीदारी, और महिलाओं के मानविधकार पर अंतर्राष्ट्रीय संधियों में सहमती दिखाना, इस बात की गवाही है कि भारत हर क्षेत्र में महिलाओं की इज्ज़त, समानता और सलामती सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्ध है, जैसा कि भारतीय संविधान मे स्पष्ट रूप से उल्लिखित है। समानता को बढ़ावा देने और यौन उत्पीड़न के समाधान के मुख्य तत्व निम्नलिखित प्ररूपों और मानकों के अंतर्गत रखे गये हैं:
- मानवाधिकारों की सर्वभौमिक घोषणा पत्र, 1948; अनुच्छेद 1,2,7 इज्ज़त, अधिकार और स्वतंत्रता में बराबरी और हर तरह के भेदभाव से सम्मान सुरक्षा की बात करता है।
- ILO भेदभाव (व्यवसाय और रोजगार) समझौता, 1958 (क्र० 111) का मकसद है, रोज़गार और व्यवसाय में लिंग, नस्ल, रंग, धर्म, राजनीतिक विचार, किसी विशेष देश या समाज में जन्म के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा देना।
- आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र, 1966, कहता है कि सभी राज्य इसके तहत प्रदत अधिकारों को बिना भेदभाव के सुनिश्चित करें।
- महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव मिटाने हेतु संयुक्त राष्ट्र समझौता (CEDAW), 1979; अनुच्छेद 11 सभी राज्यों को निर्देश देता है कि वे रोजगार के क्षेत्र में महिला-पुरुष के बीच बराबरी सुनिश्चित करें।
2.2 राष्ट्रीय वैधानिक रूपरेखा
भारत में, विशाखा दिशानिर्देश पहला कानूनी कदम है जिसके आधार पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने और इसके समाधान की दिशा में एक विस्तृत ढाँचे की रूपरेखा बनी। इससे इस बात को मान्यता मिली कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न उनके लैंगिक समानता के अधिकार, जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार, और कोई भी व्यवसाय चुनने के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
बॉक्स 2 : विशाखा दिशानिर्देशों का इतिहास
'विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान सरकार, 1997' के महत्वपूर्ण मुकदमे से भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को महत्व प्राप्त हुआ। यह मुकदमा था सरकारी सामाजिक कार्यकर्ता भँवरी देवी के सामूहिक बलात्कार का। एक महिला संगठन 'विशाखा' और 4 अन्य लोगों के एक सामूहिक मंच की ओर से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्देश जारी किये, सन् 2013 मे यौन उत्पीड़न कानून पारित होने तक ये निर्देश यौन उत्पीड़न रोकने के लिए दिशानिर्देशक की भूमिका निभाते रहे। ये निर्देश जिन्हें विशाखा दिशा निर्देशों का नाम दिया गया, 13 अगस्त 1997 को किए गए एक ऐतिहासिक न्यायिक फैसले का अंग थे। इसमें कहा गया था कि यौन उत्पीड़न, लैंगिक समानता और व्यावसायिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
2.2.1 कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम 2013
2012 में यौन उत्पीड़न और महिलाओं पर हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते, भारत में इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांगे की गई। इसी संदर्भ में, महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा दिलाने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निदान की दिशा में सन् 2013 में यह कानून बनाया गया। इस अधिनियम के अनुसार यौन उत्पीड़न महिलाओं के समानता के मूल अधिकार, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 मे दिए गए हैं, का उल्लंघन है।
2.2.2 भारत का संविधान
भारत के संविधान का मूल उद्देश्य है अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वाधीनता, समानता, भाईचारा और इज्ज़त सुनिश्चित करना, जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख किया गया है।
संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारः-
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है, इसमे लैंगिक समानता भी शामिल है जो सर्वव्यापी रूप से मान्यता-प्राप्त मूल अधिकार है।
- अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है।
- अनुच्छेद 19 (1): सभी नागरिकों को कोई भी व्यवसाय चुनने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिष्ठापित करता है।
2.2.3 भारतीय दंड संहिता (IPC)
धारा 354 A: "भारतीय दंड संहिता में यह धारा कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम, 2013 को अध्यक्षीय स्वीकृति मिलने के बाद जोड़ी गई। संशोधित आपराधिक कानून अधिनियम (amended criminal law act), 2013 हाल ही में शामिल की गई इस धारा के जरिए यौन उत्पीड़न की परिघटना को मान्यता प्रदान करता है एवं इसके लिए दंड का प्रावधान करता है।
अध्याय-3: महत्वपूर्ण परिभाषाएँ
3.1 यौन उत्पीड़न क्या है?
यौन उत्पीड़न का सम्बंध ऐसे आवंछनीय यौन व्यवहार अथवा यौन प्रकृति के मौखिक या शारीरिक आचरण से है जिसके परिणाम स्वरूप किसी व्यक्ति के काम काज में अनुचित हस्तक्षेप हो या फिर कार्यस्थल का वातावरण भयपूर्ण, शत्रुतापूर्ण या अपमानजक हो जाये। चिड़चिड़ापन पैदा करने वाले दुर्व्यवहार से लेकर बलात्कार समेत यौन शोषण एवं हिंसा जैसे सर्वाधिक गंभीर मामले इसमें शामिल हैं।
यौन उत्पीड़न कानून 2013 यौन उत्पीड़न की परिभाषा में निम्नलिखित में से कोई एक या एक से अधिक, अवांछनीय (प्रत्यक्ष या परोक्ष) आचरण शामिल है:
- शारीरिक संपर्क या उसकी कोशिश
- यौन संबधी मांगे या प्रस्ताव
- यौन सम्बंधी टिप्पणी
- अश्लील चित्र या पोर्नोग्राफी दिखाना
- किसी और प्रकार का अवांछनीय यौन या कामुक भाव से किया गया शारीरिक, मौखिक, अमौखिक आचरण।
3.2 कार्यस्थल क्या है?
अब यह स्वीकृत है कि कार्यस्थल ऐसी हर वो जगह है, जहां नियोजक एवं कर्मचारी के बीच कामकाज सम्बन्धी रिश्ते होते हैं, जो कार्यालय परिसर की सीमा के बाहर भी हो सकते हैं। इसमें बाहरी ग्राहक का कार्यस्थल, अन्य संगठनों का कार्यालय परिसर, औपचारिक कार्यों के लिए प्रयुक्त होटल, रेस्तरां व अन्य स्थान, इमारत की लिफ्ट, शौचालय, गलियारे, कैन्टीन और औपचारिक दौरे शामिल हैं।
3.3 यौन उत्पीड़न अधिनियम के अंतर्गत 'भागीदारों' की परिभाषा
3.3.1 नियोजक
नियोजक का मतलब है - किसी विभाग, संगठन, संस्थान, प्रतिष्ठान, उद्योग, सरकारी या स्थानीय अधिकारी, अधीनस्थ कार्यालय, शाखा या इकाई अध्यक्ष या कोई अन्य पदाधिकारी जिसे किसी उत्तरदायी अधिकारी ने नियुक्त किया हो। कोई भी व्यक्ति जो प्रबंधन, देखरेख, नियंत्रण के लिए ज़िम्मेवार हो।
3.3.2 कर्मचारी
अधिनियम की परिभाषा के अनुसार कर्मचारी ऐसा कोई भी व्यक्ति होता है जो कार्यस्थल पर काम करने के लिए नियुक्त किया गया है - स्थायी, अस्थायी या दैनिक वेतनभोगी व्यक्ति चाहे वह ठेकेदार द्वारा नियुक्त किया गया हो या फिर नियोजक द्वारा, वैतनिक, अवैतनिक या स्वैच्छिक रूप से काम कर रहे हों।
3.3.4 पीड़ित महिला
परिभाषा के अनुसार किसी भी उम्र की महिला जो किसी भी रोज़गार में लगी हो - जिसने कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न का शिकार होने का दावा किया हो या जो ऐसी जगह या घर में रह रही हो।
3.3.5 प्रतिवादी
अधिनियम में दी गई परिभाषा के अनुसार वह व्यक्ति जिसके खिलाफ पीड़ित महिला ने आंतरिक शिकायत समिति या स्थानीय शिकायत समिति में शिकायत दर्ज कराई हो।
अध्याय-4: यौन उत्पीड़न की रोकथाम
भारत में कार्य स्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम 2013 के अनुसार नियोजक एवं कार्यस्थल के रख-रखाव के लिए ज़िम्मेदार अन्य व्यक्तियों व संस्थानों का दायित्व बनता है कि वे "कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करें तथा यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने और इसकी शिकायतों के निपटारे के उपाय करें।"
- कार्यस्थल पर काम का सुरक्षित वातावरण मुहैया कराना जिसमें कार्यस्थल के सम्पर्क में आने वाले किसी तीसरे पक्ष (बाहरी व्यक्ति) से बचाव भी शामिल है।
- यौन उत्पीड़न के दंडात्मक परिणामों का प्रकाशन, आंतरिक समिति सहित शिकायत निपटारे की पूरी प्रणाली से सम्बंधित सूचना का प्रकाशन।
- अधिनियम के प्रावधानों के बारे में कर्मचारियों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए नियमित अंतराल पर कार्यशालायें और जागरुकता कार्यक्रम आयोजित करना।
- सेवा नियमों के तहत यौन उत्पीड़न को दुराचार के रूप में मान्यता प्रदान करना एवं इस प्रकार के आचरण के खिलाफ कदम उठाना।
4.1 नीति-निर्माण
यौन उत्पीड़न रोकने के लिए व्यापक नीति बनाना और उसे लागू करना सबसे जरूरी कदमों में से एक है। इस नीति का उद्देश्य यह होना चाहिए कि कार्यस्थल पर महिलाओं और पुरुषों के नजरिये में बदलाव आये और काम-काज का एक ऐसा माहौल तैयार हो जो पुरुषों व महिलाओं दोनों के लिए हितकर और सहायक हो।
4.2 जागरूकता बढ़ाना
यौन उत्पीड़न को लेकर एक बार नीति बन जाने पर नियोजकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे कर्मचारियों को इसके बारे में जानकारी दें और उनके बीच जागरुकता फैलाएं। उस नीति और उसकी विषय-वस्तु के बारे में, यौन उत्पीड़न क्या है, एक कर्मचारी इससे गुजरने पर क्या कर सकता है और नीति के उल्लंघन का क्या परिणाम हो सकता है- इन सबकी जानकारी दी जानी चाहिये।
4.3 प्रशिक्षण मुहैया कराना
कारगर प्रशिक्षण कार्यक्रम सभी महिला-पुरुष कर्मचारियों की संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए जरूरी है। संगठन की यौन उत्पीड़न नीति की सही समझदारी और उसका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम सबसे अच्छा तरीका है।
अध्याय-5: यौन उत्पीड़न का जवाब एवं निवारण
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एवं इसके समाधान की दिशा में शिकायत निबटारे की ऐसी व्यवस्था का होना ज़रूरी है जो सभी मजदूरों के लिए सुलभ हो। इस अधिनियम के तहत सभी नियोजकों से इस बात की अपेक्षा की जाती है कि यौन उत्पीड़न की शिकायत प्रक्रिया के औपचारिक संचालन के लिए वे 'आंतरिक शिकायत समिति' गठित करेंगे।
5.1 शिकायत समिति का गठन
5.1.1 आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaint Committee - ICC)
इस अधिनियम के तहत सभी नियोजकों (निजी/सरकारी) के लिए इसकी सभी प्रशासनिक इकाइयों में आंतरिक शिकायत समिति (आई. सी. सी.) तथा सभी जिला एवं अंचल स्तर पर इस मकसद से दफ्तर खोलना कानूनन अनिवार्य है। समिति में आवश्यक रूप से कम-से-कम 4 सदस्य होने चाहिए जिसमें से 2 का महिला होना जरूरी है।
5.1.2 स्थानीय शिकायत समिति (Local Complaint Committee - LCC)
केंद्र व राज्य सरकारों को इस अधिनियम के तहत जारी निर्देशों के कार्यान्वयन हेतु जिला स्तर पर एक जिला अधिकारी की नियुक्ति करनी होती है। प्रत्येक जिला अधिकारी के लिए अनिवार्य रूप से उन प्रतिष्ठानों से, जहां 10 से कम श्रमिक होने की वजह से आंतरिक शिकायत समिति गठित नही हो पाई है, यौन उत्पीड़न की शिकायत प्राप्त करने के लिए स्थानीय शिकायत समिति (एल.सी.सी.) का गठन करना आवश्यक है।
5.2 शिकायत दर्ज कराना
यौन उत्पीड़न के शिकार लोग विभिन्न कारणों से; जैसे कि नौकरी से निकाल दिए जाने के डर से, बदले की कार्रवाई, या फिर उत्पीड़न के चलते; अपने साथ घटित यौन उत्पीड़न के मामले में चुप्पी साध लेते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि श्रमिक शिकायत दर्ज कराने के विभिन्न विकल्पों एवं यौन उत्पीड़न के समाधान के बारे में जानकारी हासिल करें।
5.3 यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निपटारा
इस अधिनियम में यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर जवाबी कार्यवाई के दो तरीके बताए गए हैं: सुलह और जांच-पड़ताल।
5.3.1 सुलह
इस अधिनियम में ऐसा प्रावधान है कि मामले की जांच-पड़ताल शुरू करने से पहले शिकायत समिति दोनों पक्षों के बीच सुलह करवाकर मामले के निपटारे के दिशा में कदम उठाए। पीड़ित महिला के अनुरोध पर ही सुलह संभव है और समझौता पैसे के आधार पर नहीं हो सकता।
5.3.2 शिकायत की पड़ताल
इस अधिनियम के अनुसार शिकायत निबटारे की प्रणाली के तहत शिकायत पर एक समयबद्ध सीमा के अंतर्गत कार्यवाही सुनिश्चित होनी चाहिए। शिकायत मिलने के 90 दिनों के अंदर-अंदर आई. सी. सी./एल- सी.सी. तहकीकात पूरी करने के लिए बाध्य है।
अध्याय-6: भागीदारों की भूमिका
6.1 सरकार
सरकार के ऊपर राष्ट्रीय कानूनों एवं नीतियों के तहत समुचित सुरक्षा सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व होता है। इसके अतिरिक्त सरकारी विभागों को कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न की रोक-थाम और समाधान के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जनता की समझ को उन्नत बनाना चाहिए।
- केंद्र सरकार को चाहिए कि वह शासकीय राजपत्र में इस अधिनियम के प्रावधानों की अधिसूचना के माध्यम से इनके कार्यान्वयन के लिए नियम- कानून बनाए।
- सरकारी विभागों में कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न की रोकथाम एवं समाधान के लिए एक कार्यस्थल नीति बनाए व इसे लागू करे।
6.2 नियोजक-संगठन
नियोजक संगठनों की यौन उत्पीड़न की रोकथाम और निवारण तथा संगठन के सदस्य-प्रतिष्ठानों को दिशानिर्देशन के जरिए काम-काज के सुरक्षित माहौल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
6.3 श्रमिक संगठन
श्रमिक संगठन मजदूरों के बीच कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम व निवारण के बारे में चेतना का प्रसार कर, तथा मजदूर सदस्यों की यौन-उत्पीड़न के उपरांत होने वाली कार्यवाही में सहायता पहुंचा कर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
6.5 कर्मचारी और श्रमिक
एक कर्मचारी अथवा श्रमिक के रूप में प्रत्येक व्यक्ति के लिए यौन उत्पीड़न के बारे में जानना तथा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने का प्रयास करना जरूरी है। अगर श्रमिकों के साथ यौन उत्पीड़न की घटना घटित होती है तब श्रमिकों को चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि दृढ़ता पूर्वक यौन उत्पीड़न की पहल को नकार देना चाहिए।
No comments:
Post a Comment