व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2011: एक विस्तृत अवलोकन
परिचय
व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2011 (Whistle Blowers Protection Act, 2011) भारत में भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग या आपराधिक कृत्यों को उजागर करने वाले व्यक्तियों (व्हिसलब्लोअर्स) को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है। यह अधिनियम 2014 में लागू हुआ, जब राष्ट्रपति ने 9 मई 2014 को अपनी सहमति दी। यह कानून लोकतंत्र को मजबूत करने और पारदर्शिता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसमें कई कमियां भी हैं। यह सामग्री 7 अक्टूबर, 2025 तक अद्यतन है।
अधिनियम का उद्देश्य
- सार्वजनिक हित में भ्रष्टाचार या अनियमितताओं की शिकायत करने वालों की पहचान गोपनीय रखना।
- झूठी शिकायतों के लिए दंड का प्रावधान।
- केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को शिकायतों की जांच का अधिकार।
- संयुक्त राष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी संधि (2005) के अनुरूप भारत की प्रतिबद्धता।
मुख्य प्रावधान
| प्रावधान | विवरण |
|---|---|
| शिकायत का दायरा | केवल केंद्र सरकार के अधिकारियों या एजेंसियों से संबंधित भ्रष्टाचार, सत्ता दुरुपयोग या आपराधिक कृत्य। राज्य सरकार के कर्मचारी शामिल नहीं। |
| गोपनीयता | व्हिसलब्लोअर की पहचान कभी प्रकट नहीं की जा सकती, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले के अनुसार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन न हो। |
| झूठी शिकायतों पर दंड | जानबूझकर झूठी शिकायत पर दंड का प्रावधान। |
| जांच प्रक्रिया | सीवीसी या केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच। शिकायतकर्ता को सुरक्षा प्रदान की जाती है। |
| अनाम शिकायतें | अनाम शिकायतें स्वीकार नहीं की जातीं; शिकायतकर्ता को अपनी पहचान प्रकट करनी पड़ती है। |
| पुरस्कार का अभाव | शिकायत की सफल जांच पर व्हिसलब्लोअर को कोई पुरस्कार नहीं मिलता। |
इतिहास और विकास
- 2001: विधि आयोग ने भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए व्हिसलब्लोअर कानून की सिफारिश की।
- 2003: एनएचएआई इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की हत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया।
- 2004: लोकहित प्रकटीकरण और सूचनादाताओं की सुरक्षा संकल्प (PIDPIR) जारी।
- 2007: दूसरी प्रशासनिक सुधार आयोग ने विशिष्ट कानून की सिफारिश की।
- 2010: लोकसभा में विधेयक पेश।
- 2011: लोकसभा से पारित।
- 2014: अधिनियम लागू।
- 2015: संशोधन विधेयक में कई प्रावधानों को कमजोर किया गया, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों को बाहर रखना।
कमियां और आलोचना
- दायरा सीमित: केवल केंद्र सरकार तक; राज्य कर्मचारियों को कवर नहीं।
- अनाम शिकायतें अस्वीकार: इससे साहसी कार्यकर्ताओं को खतरा बढ़ता है।
- पुरस्कार का अभाव: सफल शिकायत पर प्रोत्साहन नहीं।
- कार्यान्वयन की कमी: कई मामलों में व्हिसलब्लोअर्स पर हमले जारी, जैसे शन्मुगम मंजुनाथ (2005) की हत्या।
- राष्ट्रीय सुरक्षा छूट: आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA) के तहत अभियोजन से सुरक्षा नहीं।
प्रसिद्ध उदाहरण
- सत्येंद्र दुबे (2003): एनएचएआई में भ्रष्टाचार उजागर करने पर हत्या।
- शन्मुगम मंजुनाथ (2005): ईंधन तस्करी के खिलाफ आवाज उठाने पर हत्या।
- 2013 सुप्रीम कोर्ट फैसला: व्हिसलब्लोअर की पहचान कभी प्रकट न करने का आदेश।
निष्कर्ष
व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसकी सीमाओं को दूर करने की आवश्यकता है। अनाम शिकायतों को मान्यता, पुरस्कार प्रणाली और राज्य स्तर पर विस्तार से इसे मजबूत बनाया जा सकता है। भारत जैसे विकासशील लोकतंत्र में पारदर्शिता के लिए मजबूत सुरक्षा आवश्यक है। अधिक जानकारी के लिए: भारत सरकार पोर्टल।
प्रकाशित: 7 अक्टूबर, 2025। स्रोत: विकिपीडिया, दृष्टि आईएएस, क्लियरटैक्स।