एक निंदा प्रस्ताव अविश्वास प्रस्ताव से अलग है। संबंधित निकाय के गठन के आधार पर, "अविश्वास" से मंत्रिपरिषद या अन्य पद-धारकों की बर्खास्तगी हो सकती है और अक्सर कार्यकारी शाखा के अधिकांश नेतृत्व का विघटन होता है। दूसरी ओर, "निंदा" अस्वीकृति दिखाने के लिए है और इसके परिणामस्वरूप मंत्रियों का इस्तीफा नहीं होता है। निंदा का प्रस्ताव एक व्यक्तिगत मंत्री या मंत्रियों के समूह के खिलाफ हो सकता है। हालांकि, किसी देश के संविधान के आधार पर, पूरे कैबिनेट के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अधिक निर्देशित किया जा सकता है। फिर से, लागू नियमों के आधार पर, निंदा प्रस्तावों को प्रस्ताव के कारणों को बताने की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के लिए विशिष्ट कारणों की आवश्यकता नहीं हो सकती है।
आपके लिए यह जानना आवश्यक है कि इस प्रस्ताव के विषय में संविधान में कोई उल्लेख नहीं है.केंद्र में यह प्रस्ताव केवल लोकसभा की कार्रवाई से ही जुड़ा है, क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है.
अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव दोनों निचले सदन यानी केंद्र सरकार के मामले में लोकसभा और राज्य सरकारों के मामले में विधानसभा में लाये जा सकते हैं.
लोकसभा ने अपने नियम 198 के तहत मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया के लिए नियम बनाए हैं.
सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके उपरान्त स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहती है. जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है. अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम-से-कम 50 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो.
कार्य मंत्रणा समिति इस प्रस्ताव पर विचार करती है. उसके बाद लोकसभा में मतदान के लिए रखा जाता है. यदि यह पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है.
विश्वास प्रस्ताव
यह प्रस्ताव केंद्र में प्रधानमंत्री और राज्य में मुख्यमंत्री पेश करते हैं. सरकार के बने रहने के लिए इस प्रस्ताव का पारित होना आवश्यक है. प्रस्ताव पारित नहीं हुआ तो सरकार गिर जाएगी. यह दो परिस्थितियों में लाया जाता है –
जब सरकार को समर्थन देने वाले घटक समर्थन वापिस का ऐलान कर दें, ऐसे में राष्ट्रपति या राज्यपाल प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को सदन का भरोसा प्राप्त करने को कह सकते हैं.
अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा जरुरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है.
इतिहास
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे.बी. कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की सरकार के विरुद्ध रखे गये इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् लोकसभा इ प्रति जवाबदेह है, अर्थात् इस सदन में बहुमत हासिल होने पर ही मंत्रिपरिषद बनी रही सकती है. इसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर प्रधानमन्त्री सहित मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है.
संसद में 26 बार से ज्यादा यह प्रस्ताव रखे जा चुके हैं और सर्वाधिक अविश्वास प्रस्ताव 15 बार इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार के विरुद्ध आये. लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार इस प्रस्ताव का सामना किया.
24 बार ये प्रस्ताव असफल रहे हैं लेकिन 1978 में ऐसे एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया.
इस प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गाँधी की सरकार के विरुद्ध रखे.
NDA सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. वाजपेयी जब खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भी दो बार इस प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इनमें से पहली बार तो वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन दूसरी बार विपक्ष को उन्होंने हरा दिया.
आमतौर पर जब संसद अविश्वास पर वोट करती है या वह विश्वास मत में विफल रहती है, तो किसी सरकार को दो तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करनी होती है – त्यागपत्र देना, संसद को भंग करने और आम चुनाव का अनुरोध करना.