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Saturday, August 21, 2021

रक्षाबंधन का इतिहास

RAKSHABANDHAN/रक्षा बंधन
This Quiz is prepared on the occasion of RAKSHABANDHAN festival. All questions are compulsory. E-certificate will be sent after the successful submission of the quiz form.

रक्षाबंधन पर्व भाई बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार हर साल श्रावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. बहन भाई के इस पवित्र त्योहार के दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं.

 रक्षाबंधन का इतिहास:

पहले तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधी जाती थी

सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है। राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है।

रक्षाबंधन पर्व भाई बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार हर साल श्रावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. बहन भाई के इस पवित्र त्योहार के दिन बहन अपने भाई को प्यार के डोर के रूप में राखी बांधती हैं. यह त्योहार प्यार का अटूट बंधन दर्शाता है. रक्षाबंधन का अर्थ ही है रक्षा के लिए बांधा गया बंधन. इसलिए बहन अपनी हर प्रकार से रक्षा के लिए अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती हैं. राखी बंधवाने के बाद भाई अपनी बहन को प्यार से पैसे या तोहफा देता है, और अपनी बहन का सदैव रक्षा करने का वचन देता है. रक्षाबंधन के की इतिहास की बात करें तो यह त्योहार सदियों पुराना है और इस त्योहार के शुरूआत की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. 

'इसे समझो न रेशम का तार भैया, मेरी राखी का मतलब है प्यार भैया!' साधना सरगम की आवाज में सजा तिरंगा फिल्म का यह गाना रक्षाबंधन और भाई-बहन के रिश्ते की खूबसूरती को बेहद गहराई से बयान करता है। रक्षाबंधन हिंदू धर्म उन त्योहारों में शुमार है, जो अपनेआप में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए हैं।

इस दिन हर भाई सूनी कलाई बहन की ओर राखी बांधने की इंतजार करती है। परदेश में बसे भाई भी बड़ी बेसब्री से बहन की राखी की बांट जोहते हैं। बहन के घर उपहार लेकर भी रक्षा का धागा बंधवाते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ सगी बहन ही भाई को राखी बांध सकती है। मुंहबोले भाई और बहन में भी रक्षा बांधने-बंधवाने का दस्तूर काफी पुराना है।

सही मायनों में रक्षाबंधन की परपंरा ही उन बहनों ने शुरू की है, जो सगी नहीं थीं। उन्होंने अपनी रक्षा के लिए मुंहबोले भाई को राखी बांधकर जो परंपरा शुरू की, वह आज रक्षाबंधन का त्योहार बनकर बदस्तूर जारी है।

रक्षाबंधन : भगवान इंद्र और इंद्राणी 

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। लेकिन भविष्य पुराण के अनुसार, इसकी शुरुआत देव-दानव युद्ध से हुई थी। उस युद्ध में देवता हारने लगे। भगवान इंद्र घबरा कर देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। उस अभिमंत्रित धागे की शक्ति से देवराज इंद्र ने असुरों को परास्त कर दिया। यह धागा भले ही पत्नी ने पति को बांधा था, लेकिन इसे धागे की शक्ति सिद्ध हुई और फिर कालांतर में बहनें भाई को रक्षा बांधने लगीं।

रक्षाबंधन : भगवान कृष्ण और द्रौपदी 


पौराणिक गाथाओं में राखी से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानी भगवान कृष्ण और द्रौपदी की है। शिशुपाल वध के समय श्रीकृष्ण इतने गुस्से में चक्र चलाया कि उनकी अंगुली घायल हो गई। उससे खून टपकने लगा। द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर भगवान की अंगुली पर बांध दिया। भगवान ने उसी समय पांचाली को वचन दिया कि वह हमेशा संकट के समय उनकी सहायता करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने दौपद्री चीरहरण के समय अपना वचन पूरा भी किया।

रक्षाबंधन : दानवराज बलि और लक्ष्मी 

रक्षाबंधन की कथा दानवराज बलि से भी जुड़ी है। राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग पर अधिकार जमाना चाहा। इससे देवराज इंद्र घबरा गए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान करने का वचन दे दिया। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस दान के बदले राजा बलि ने भगवान से हमेशा अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। यह प्रसंग भी रक्षाबंधन मनाने की वजह बना।

रक्षाबंधन : हुमायूं और कर्णावती/ अलेक्जेंडर व पुरू 


मध्यकालीन युग में यह त्योहार समाज के हर हिस्से में फैल गया। इसका श्रेय जाता है रानी कर्णावती को। उस वक्त चारों ओर एकदूसरे का राज्य हथियाने के लिए मारकाट चल रही थी। मेवाड़ पर महाराज की विधवा रानी कर्णावती राजगद्दी पर बैठी थीं। गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह उनके राज्य पर नजरें गड़ाए बैठा था। तब रानी ने हुमायूं को भाई मानकर राखी भेजी। हुमायूं ने बहादुर शाह से रानी कर्णावती के राज्य की रक्षा की और राखी की लाज रखी।

दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं।

उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।

इस त्योहार को देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है।

तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं

RAKSHABANDHAN/रक्षा बंधन
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